अपने आप से ये सवाल पूछिए, क्या आप एक देशभक्त दुकानदार हैं?
एक देशभक्त वो थे, जिन्होंने आज से 73 वर्ष पहले हमें आज़ादी दिलवाई थी। दूसरे देशभक्त वो हैं जो आज सरहद पर, अपने परिवार से दूर, देश की रक्षा के लिए हरदम तैनात हैं। और तीसरे देशभक्त वो हैं, जो हमारे देश को फिर से किसी का ग़ुलाम बनने ना दें।
हमारा देश फिर से ग़ुलामी की तरफ़ तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहा है। आप एक दुकानदार के रूप में, राष्ट्रहित को बढ़ावा देकर, देशभक्त हो सकते हैं और इसे रोकने में अहम रोल प्ले कर सकते हैं। कैसे? जानेंगे इसी ब्लॉग-पोस्ट में।
तक़रीबन 400 साल पहले ईस्ट-इंडिया कम्पनी, भारत में आयी थी और उसके बाद का इतिहास आपको मालूम ही होगा। आज वही इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है। परन्तु आज के समय में किसी देश को अपना ग़ुलाम बनाने के लिए, वहाँ गोला-बारूद की ज़रूरत नहीं। बल्कि ज़रूरत है तो सिर्फ़ उस देश की अर्थव्यवस्था पर क़ब्ज़ा करने की।
अपने आस-पास देखिए और कुछ बड़ी कम्पनियों के नाम सोचिए। आप पाएँगे कि अधिकतर कम्पनियों का मूल विदेशी है। या फिर, ये कम्पनियाँ भारतीय होकर भी, विदेशी कम्पनियों से निवेश लिए बैठी हैं और उनका हुकुम बजाती हैं।
कैसे बन रहे हैं हम फिर से ग़ुलाम?
आज-कल विदेशी कम्पनियों का, भारत की ग्रोसरी मार्केट में कुछ ज़्यादा ही इन्वेस्टमेंट हो रहा है। उसका मुख्य कारण यह है कि, इस क्षेत्र में कभी रिसेशन नहीं आ सकता और साथ ही ये सबसे तेज़ी से बढ़ रही इंडस्ट्री है।
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, कि ईस्ट-इंडिया कम्पनी भी भारत में मसालों का व्यापार करने ही आयी थी, जो की ख़ुद ग्रोसरी का ही हिस्सा हैं।
और आज की तारीख़ में भी, ऐमज़ान, बिग-बास्केट, ग्रोफर्स हो या कोई और बड़ी विदेशी कम्पनी या फिर विदेशी-निवेश प्राप्त भारतीय कम्पनी, सब बेच रहे हैं तेल, साबुन और आटा। ये सभी कम्पनियाँ जानती हैं कि यही एक तरीक़ा है, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को अपना ग़ुलाम बनाने का। उस देश के नागरिकों की सोच पर और रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ों पे अपना आधिपत्य स्थापित कर, अपनी शर्तों पर बिज़नेस करना।
कितनी शर्म की बात है कि, रोज़ काम में आने वाला सामान, भारत में ही बनता है, भारतीय ही ख़रीदते हैं और भारतीय ही बेचते हैं; पर उसका फ़ायदा मिलता है किसी चीनी या अन्य विदेशी कम्पनी को।
क्यों कर पा रही हैं ये कम्पनियाँ क़ब्ज़ा?
आज हर चीज़ ऑनलाइन ख़रीदी-बेची जा रही हैं, और ग्रोसरी भी इससे दूर नहीं है। इसी बात को समझकर, इन कम्पनियों ने बनाया ऑनलाइन सिस्टम, जिसके द्वारा ग्राहक इन्हें अपने लैप्टॉप या स्मॉर्ट्फ़ोन के माध्यम से ऑर्डर दे सकता है।
पहले तो ग्राहक ऑनलाइन मंगवाते थे, दुकान पे जाने के झंझट से बचने के लिए। पर अब जबसे कोरोना ने अपना क़हर ढाया है, तब से तो मानो इन सभी ऑनलाइन बेचने वाली कम्पनियों की चाँदी हो रही है।
सभी कम्पनियाँ जानती हैं की दुकानदार ऑनलाइन ख़रीदने की सुविधा अपने ग्राहक को नहीं दे पाएगा। ये सोच कर कि ऑनलाइन वेबसाइट या ऐप बनवाना काफ़ी कॉस्ट्ली है और हर दुकानदार इसे नहीं बनवा सकता, कम्पनियाँ इसका पूरा फ़ायदा उठा रही हैं।
दुकानदार कैसे बचाएँ अपने देश भारत को ग़ुलामी से?
जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा, देशभक्ति केवल सरहद पर तैनात रहकर देश की रक्षा करना ही नहीं। आप एक दुकानदार के तौर पर भी देशभक्त हो सकते हैं, अपने देश भारत की आर्थिक आज़ादी को बरक़रार रख कर।
जी हाँ! ओम-ओलो देता है आपको मौक़ा, उन ऑनलाइन कम्पनियों को मुँहतोड़ जवाब देने का। आप बनवाएँ अपनी ख़ुद की वेबसाइट व मोबाइल ऐप और वो भी बिना किसी भारी ख़र्चे के। मात्र रु० 2,000/- प्रति माह में, सिर्फ़ उतना ही ख़र्च, जितना ऐप को मैंटैन करने में आता है।
जानिए क्यों दे रहे हैं हम आपको इतना सस्ता ऐप!
दुनिया में ईमानदारी से बिज़नेस करके, पैसे कमाने के कई रास्ते हैं। ख़ास तौर पर एक आइ० टी० बिज़नेस में।
पर हमारी कम्पनी AumsWow Wellness Pvt. Ltd. का विज़न है “सर्वे भवन्तु सुखीन:” जिसके अंतर्गत हम सर्व-उत्थान का प्रयास करते हैं। साथ ही, हमारे लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि है।
हमारे देश के आंदोलन, “आत्मनिर्भर-भारत” में “कल के लिए लोकल” व “वोकल फ़ोर लोकल” का विशेष महत्व है। ओम-ओलो इसी दिशा में उठाया गया एक बहुत बड़ा क़दम है, जो कि एक दिन मील-का-पत्थर साबित होगा।
ओम-ओलो, हमारी कम्पनी की उस मिशन का नाम है, जिसमें हम सभी दुकानदारों को उनके ख़ुद के वेबसाइट व मोबाइल ऐप के द्वारा उन्हें सशक्त बनाते हैं, इन ऑनलाइन कम्पनियों से मुक़ाबला करने के लिए। ओम-ओलो, पूर्णत: भारत में, भारतियों द्वारा व केवल भारतियों के लिए विकसित, एक पर्सनलाइस्ड वेबसाइट व मोबाइल ऐप है।
अब जानिए, ओम-ओलो कैसे बनाता है आपको देशभक्त:
- मान लीजिए जहाँ आपकी दुकान है, वहाँ सॉसायटी या फिर इलाक़े में 200 से 500 परिवार रहते हैं
- हर एक परिवार महीने में कम से कम रु० 10 से 20 हज़ार का घर का सामान मंगवाता है
- अगर मैं कम से कम भी जोड़ूँ तो एक महीने के, रु० 10,000 x 200 परिवार = रु० 20,00,000 (रुपए बीस लाख) होते हैं
- यदि मैं इसकी कैल्क्युलेशन को 500 परिवारों पर करूँ तो 20,000 के हिसाब से, ये राशि रु० 1,00,00,000 (रुपए एक करोड़) आती है।
- ये पैसा अभी किसी विदेशी कम्पनी के टर्नोवर को बढ़ा कर, उनको फ़ायदा पहुँचा रहा है
- और एक दुकानदार के नाते, केवल आप ही रोक सकते हैं, हमारे देश के इस धन को देश के बाहर जाने से।
अगर भारत के 500 दुकानदार भी इस धनराशि को बाहर जाने से रोक पाएँ, तो औसतन रु० 20,00,000/- के हिसाब से भी, ये कुल रु० 1,00,00,00,000/- (रुपए सौ करोड़) प्रति माह होते हैं। जी सही पढ़ा आपने, ये सौ करोड़ रुपए हर महीने हम रोक सकते हैं और बचा सकते हैं अपने देश को फिर से ग़ुलामी से।
अब बताइए, क्या आप एक देशभक्त दुकानदार हैं? यदि हाँ! तो अभी मुझसे यहाँ क्लिक करके सम्पर्क करें। और बनवाएँ अपनी ख़ुद की वेबसाइट व मोबाइल ऐप।
अपने देश भारत की स्वतंत्रता क़ायम रखें, हम आपके साथ हैं। आप सभी को “स्वतंत्रता” दिवस की शुभकामनाएँ 🙏🇮🇳